“सिर साटे रुख रहे, तो भी सस्तो जाण”
आज पूरे भारत में लॉरेंस विश्नोई का नाम लिया जा रहा हैं ,आज कहानी “हकीकत” में, गैंगस्टर “लॉरेंस विश्नोई” के बारे में कोई चर्चा नहीं होगी,लेकिन आज बात करेंगे उस समाज की जिसे पर्यावरण का परहहरी माना जाता हैं ,इस विश्नोई समाज को बुरी नजरों से कुछ लोग देख रहे हैं , लेकिन सवाल ये क्या पूरा समाज एक व्यक्ति के खराब होने से,ख़राब हो जाता हैं
सलमान को धमकी देने का बाद ,आज विश्नोई समाज चर्चाओं में बना हुआ, आज हम बताते हैं विश्नोई समाज की सच्चाई जिसे आपने नहीं सूना होगा, क्योकिं एक बुरी के पीछे 100 सच्चाई रहती हैं ,और बाद में सच्चाई की जीत होती हैं,
आज बात उस सच्चाई जिसे सुनकर आप भी विश्नोई समाज के लिए सोचने पर मजबूर हो जायेगा
ये वहीं विश्नोई समाज हैं ,जिसने एक पेड़ को बचाने के लिये 363 लोगों ने अपनी गर्दन कटा ली थी,
आखिर ये गर्दन कटाने वाली हकीकत क्या हैं ,आइये जानते हैं
लेकिन उससे पहले इनकी नींव रखने वाले गुरु कौन थे ,क्या उनके बचन थे ,जिसे आजकत ये समाज निभाता आ रहा हैं
सुनिए विश्नोई समाज की हकीकत ,
विश्नोई पश्चिमी थार रेगिस्तान और भारत के उत्तरी राज्यों में पाया जाने वाला एक समुदाय है इस समुदाय का प्रमुख धार्मिक स्थान मुकाम, बीकानेर है,इस समुदाय के संस्थापक जाम्भोजी महाराज थे, जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति विश्नोई होता हैं, “बिश्नोई” शब्द की उत्पति 20+9= बिश्नोई से हुई है। कई मान्यताओं के अनुसार विश्नोई समाज के गुरु जाम्भोजी भगवान विष्णु के अवतार माने गए है,लोगों का मानना हैं अधिकांश बिश्नोई जाट व राजपूत जातियों से उत्पन्न है।
ये समाज बिश्नोई विशुद्ध शाकाहारी होते हैं। और वन्यजीवों, पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला समुदाय हैं इस वन्यजीवों से बहुत लगाव रहता हैं ,कभी कभी हिरन के बच्चे को भी दूध पिलाते हुए माओं को देखा जाता हैं ,
इनके गुरु जाम्भोजी हैं ,उनकी कीर्ति के किस्से आज भी माने जाते हैं ,
एक बार की बात हैं , 1542 में गुरु जाम्भोजी के सामने , राजस्थान की धरा पर भयंकर अकाल पड़ा ,जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की,इसी दौरान जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया , और 29 नियमों की दीक्षा एवं पहल देकर बिश्नोई समुदाय की स्थापना की। इन 29 नियमों में वन्य जीवों से लेकर पेड़ों तक बचाने के लिए बचन बद्ध थे, और ये जाती बचन के अनुसार आज भी काम कर रही हैं ,
अब कहानी शुरू होती हैं ‘खेजड़ली बलिदान’
खेजड़ली बलिदान स्मारक, जोधपुर में िस्थति हैं ,इस बलिदान को आज भारत के प्र्धानमंती भी मानते हैं,
राजस्थान के रेगिस्तान में जोधपुर जिले का एक गाँव है- खेजड़ली। इस गांव का नाम ही ‘खेजड़ी’ वृक्ष से लिया गया है जिनकी संख्या इस गाँव में बेहद अधिक है थी , 18वीं शताब्दी की शुरुआत में इसी स्थान से ,चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसे आज भारत के पर्यावरण आंदोलन में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, उस आंदोलन की पहल एक महिला अमृता देवी, और उनकी तीन बेटियों ने की थी,
खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है, खेजड़ी के पेड़ रेगिस्तानी परिस्थितियों के लिए बेहद अनुकूल होते हैं,बताया जाता हैं की इसकी जड़ें पानी तक पहुंचने के लिए ,ज़मीन में कुछ सौ फीट नीचे तक जाती हैं, और विश्नोई समाज खेजड़ी के वृक्ष को भगवान् की तरह पूजता हैं , बताया जाता हैं अकाल के समय इसकी छाल भी खाई जाती थी,और जब से लेकर आजतक विश्नोई समाज ‘हरे पेड़ों को मत काटो और पर्यावरण को बचाओ’ वाले अभियान पर काम करता हैं,
आईये बताते हैं एक महिला अमृता देवी की कहानी, जिसके इतहास को विश्नोई समाज बड़े गर्भ से सुनता हैं,और उसे फॉलो भी करता हैं ,
यह राजस्थान के जोधपुर स्थित खेजड़ली गाँव की हकीकत हैं , एक दौरा में थार रेगिस्तान में होने के बाद भी बिश्नोई गांवों में बहुत हरियाली थी, और खेजड़ी के पेड़ बहुतायत में थे, 1730 में भद्रा महीने के दसवें उज्ज्वल पखवाड़े के दिन, अमृता देवी
अपनी तीन बेटियों ,आसू, रत्नी ,और भागू बाई के साथ घर पर थीं, तभी अचानक उन्हें पता चला कि मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक ,दीवान गिरधर दास भंडारी द्वारा , उनके गांव खेजड़ी के पेड़ों को काटने आए हैं, खेजड़ी के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराजा अभय सिंह अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे,उस वक़्त लकडियों को लाने के लिए महाराजा ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों से लकड़ियां लाने का आदेश दिया था।
खेजड़ी के पेड़ों को काटना ये समाज अभिशाप मानता हैं ,इसलिए अमृता देवी ने राजा के आदमियों का विरोध किया, लेकिन राजा के आदमी नहीं माने ,और अमृता देवी पर कोई और उपाय न देख, फिर उन्होंने एक पेड़ को गले से लगा लिया, और घोषणा की कि “सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण”
यानी “यदि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी, एक पेड़ बचाया जाता है, तो वह सही है।” अड़ियल आदमियों ने पेड़ को काटने के लिए उनके शरीर को काट डाला, उनकी तीन बेटियां भी उनके नक्शेकदम पर बहादुरी से चली, और पेड़ों को गले लगा लिया, इसके बाद भी राजा की सेना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ,गांव में ख़बर फैल गई, और 83 गांवों के बिश्नोई खेजड़ली में एकत्रित हो गए, फिर सारे लोग एक एक पेड़ से लिपट गए ,जिसमें 363 विश्नोई को राजा की सेना ने ज़िंदा काट दिया ,
गांव में उस दौरान बड़ा नरसंहार हुआ, चारों तरफ दुःख के बादल टूट पड़े,लेकिन विश्नोई समाज ने पेड़ो को नहीं कटने दिया ,
जब राजा महाराजा अभय सिंह ने यह समाचार सुना, तो उन्होंने पेड़ों की कटाई बंद करवा दी , बिश्नोइयों समाज के साहस का सम्मान करते हुए, उसने समुदाय से माफी मांगी ,और बिश्नोई गांवों के भीतर और आसपास के पेड़ों को काटने ,और जानवरों के शिकार पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगाने के लिए, एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण फरमान जारी किया, वह संरक्षण आज भी मान्य है ,इनके बलिदान को ये विश्नोई समाज आज भी बड़े धूम धाम से मनाता हैं,
खेजड़ी पेड़ों को बचाने के लिए हुए इस आंदोलन को पहला ‘चिपको आंदोलन’ माना जाता है, आज हम बिश्नोइयों को भारत का प्रथम पर्यावरणविद भी कहते हैं, अठाहरवीं शताब्दी में अमृता देवी के उस हौसले और नेतृत्व क्षमता ने, बाद में कई आंदोलनों और लोगों को प्रेरणा दी,
राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों ने वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए , 2013 में, पर्यावरण और वन मंत्रालय ने अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार, की शुरुआत की, जो व्यक्तियों या संस्थानों को दिया जाता है।
यानी आज भी इस समाज को पूरे भारत में पर्यावरण विद समाज माना जाता हैं ,
तो अब आप ये मान सकते हैं की ,एक व्यकित के गलत होने से पूरा समाज गलत नहीं होता जाता हैं,
अब बात आती हैं की विश्नोई समाज सलमान खान से क्यों नाराज हैं ,तो उसकी बजह क्या हैं ,वो भी आपको बताते हैं
देरशाल ये मामला 1998 का है जब राजस्थान के जोधपुर में फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग चल रही थी. शूटिंग के दौरान ही सलमान खान पर काला हिरण के शिकार का आरोप है, इस मामले में सलमान को 5 दिन जेल में रहे ,लेकिन फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा रियायत मिली , फिलहाल ये मामला अदालत में पेंडिंग बतया जाता है.
बिश्नोई समाज के 29 नियमों में गलती करने पर क्षमा करने का भी प्रावधान है. नियम के तहत अगर किसी ने कोई अपराध कर दिया है, बिश्नोई समाज के सचिव हनुमान बिश्नोई का भी कहना है, कि अगर सलमान की तरफ से माफी की पेशकश होती है, तो उसे बिश्नोई समाज के सामने रखा जाएगा. हनुमान बिश्नोई गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को भी इस मामले में सही ठहराते हैं.
और लॉरेंस ने सलमान खान से पहले ही कह दिया हैं की ,जाम्भोजी महाराज के मंदिर के सामने जाकर माफी मांगलें ,तो कुछ नहीं होगा ,लेकिनदुसरी तरफ सलमान खान के पिता संजय खान ने बड़े चैनल को इंटरवियु के दौरान एलान कर दिया हैं ,की मेरे बेटे ने कोई गलती की नहीं हैं ,तो माफी क्यों मांगें
इस खबर पर आपकी क्या प्रितकिर्या हैं क्या माफ़ी मांगने से छोटा होजाता हैं कोई, या फिर ये सलमान खान की प्रतिष्ठा खराब हो जाएगी ,