Karpuri Thakur : आप सच में दबे-कुचले लोगों के नेता हैं… जब अचानक बाइक पर बिहार के सीएम को देख बोल उठे थे विदेशी पत्रकार
Karpoori Thakur (कर्पूरी ठाकुर)
Former Chief Minister of Bihar
एक ऐसे सीएम जिसके पास पहने के लिए कुर्ता नहीं था ,विदेश जाने के लिए फटा कोट पहना,अपने बेटे के इलाज के लिए सरकारी ख़र्च लेने के लिए मना किया ,और तो और अपने नाम एक मकान तक नहीं बनाया,मरते दम तक ईमानदारी के मिशाल पेश करते रहे ,
आज की हकीकत बिहार में जन्मे कपूरी ठाकुर की
साल 1938 की बात हैं बिहार के समस्ती पुर का पितौंझिया गांव शाम ढलने को थी ,एक नो जवान लड़का शहर से मेट्रिक के नतीजे देख कर लोट रहा था ,पिता गांव में हजामत बनाते थे ,पड़ने के मौके नहीं थे,बहुत मुश्किल के साथ पढ़ाई चल रही थी ,और मेट्रिक के नतीजे आये तो लड़का पहले दर्जे से पास हुआ, ये वो दौर था जब मेट्रिक पास लोग ढूढ़ने से नहीं मिलते थे ,ये परिवार के लिए बड़ी उपलब्धि थी गरीब पिता गांव के जमींदार के यहां खुस खबरी देने के लिये पहुंचा,उन्होंने सोचा की जमींदार उन्हें सहारा दे देगा तो लड़का आगे भी पड़ जाएगा ,लेकिन जैसे ही युवा लड़के ने जमींदार के घर बताया तो जमींदार ने कहा चलो अब गोड़ दबाओ , लड़के को बहुत बुरा महसूस हुआ ,लेकिन दिल में छिपे अरमानों ने लड़के के सपनों को साकार होते देर नहीं लगी और घटना के 32 साल बाद इस लड़के के गोड़ मुख्यमंत्री के कुर्शी पर रुके ,
बिहार की सोंधी और उर्वर मिट्टी में 24 जनवरी, 1924 को एक शख्स का जन्म हुआ था। झोपड़पट्टी में। जिसका पूरा सामाजिक परिवेश अंधकार में डूबा रहा। गांव में नाई के पेशे से जुड़े इस शख्स के पिता को एहसास नहीं था कि ये बालक एक दिन गरीबी की कोख से निकलकर समाज के अंधकार को दूर करने के लिए बड़ी लकीर खींच देगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर की। आज ही के दिन 24 जनवरी 1924 में उनका जन्म बिहार में हुआ था ,
केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कपूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का एलान कर दिया हैं ,उनकी 100 वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें परणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा ,इससे लोगों में काफी खुसी हो रही हैं ,
लेकिन अगले 5 मिंट कपूरी जी से जुड़े किस्से ध्यान से सुनिए क्योंकि उनके बलिदानों के किस्से,और समस्या का निवारण ,जिसे सुनकर आप भी अच्चभित हो जाएंगे ,
बिहार के समस्तीपुर के पितौंझिया में जन्मे कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। जननायक 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में लंबा सफ़र बिताने के बाद जब उनका निधन हुआ, तब उनके परिवार को विरासत में दने के लिए एक मकान तक नहीं था। वे न तो पटना में, न ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।
नेताओं ने साझा किया स्मरण
जननायक कर्पूरी ठाकुर को लेकर बिहार राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य रहे निहोरा प्रसाद यादव ने ‘साक्ष्य’ में एक बेहतरीन स्मरण साझा किया है। निहोरा प्रसाद यादव ने लिखा है कि मुख्यमंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर हर दिन पटना में जरूर मौजूद रहते थे। वे साढ़े सात बजे तैयार होकर अपने सरकारी आवास पर बैठ जाते। वहां एक बड़ा सा टेबल, जो कहीं-कहीं से टूटा हुआ रहता, उसी के पास लगे बेंच पर बैठते। इस दौरान बिहार भर से गरीबों का हुजूम पहुंचता। आने वाले लोगों के तन पर साफ कपड़े नहीं होते। कईयों के पैर में चप्पल नहीं होता। वे अपनी पीड़ा सुनाते। कर्पूरी ठाकुर उनकी समस्या को सुनते।
कैसे लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे कपूरी ठाकुर
निहोरा प्रसाद यादव ने अपने स्मरण में बताया है कि उस दौरान मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों की समस्या को लेकर अधिकारियों को तत्काल फोन करते। समस्या के निवारण का निर्देश देते। उसके साथ ही कई अधिकारियों को पत्र भी लिखते। इतना ही नहीं दूर से आने वाले लोगों से एक निवेदन भी करते। कपूरी ठाकुर अपने यहाँ आने वाले शकियात कर्ताओं से कहते कि-इतना पैसा लगाकर आने की जरूरत क्या थी? मैं खुद आपके इलाके में आने वाला था। कर्पूरी ठाकुर गरीबों को नम्र भाव से ये बात समझाते। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि एक रात जब उनसे मिलकर चलने लगे । उन्होंने कहा कि छह बजे आ जाइएगा। सुबह कहीं चलना है। उन्होंने स्मरण साझा करते हुए लिखा है कि वे अक्सर मुझे अपने साथ लेकर जाया करते थे।
निहोरा प्रसाद यादव अगले दिन ठीक छह बजे तैयार होकर जननायक के आवास पर पहुंच जाते हैं। उसके बाद अपनी बाइक बंद कर जैसे ही खड़े होने का प्रयास करते हैं। कर्पूरी ठाकुर उन्हें आवाज देते हैं। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि मुख्यमंत्री उनसे कहते हैं कि- चलिए। उसके बाद वे अचरज भरी निगाह से दबी आवाज में जननायक कर्पूरी ठाकुर से प्रश्न करते हैं कि गाड़ी तो अभी आपकी आई नहीं। उसके बाद मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर कहते हैं कि आपकी मोटरसाइकिल से ही चलेंगे। निहोरा प्रसाद यादव अपने स्मरण में लिखते हैं कि इतना सुनने के बाद मेरा खून सुख गया। थोड़ी देर तक मैं शून्यता की स्थिति में चला गया। फिर उन्होंने आवाज दी। कहा- स्टार्ट करिए।
निहोरा प्रसाद यादव आगे कहते हैं कि बड़ी हिम्मत और साहस के साथ अपने आपको नियंत्रित करते हुए मैंने मोटरसाइकिल स्टार्ट की। बैठने के क्रम में पीछे लगे कैरियर से कर्पूरी ठाकुर के पैर छिल गये। मैंने अफसोस और दुख प्रकट किया। उन्होंने कहा कि मेरा कद छोटा है। इसलिए ऐसा हुआ। चलिए कोई बात नहीं। बैठने के बाद दोनों हाथ मेरे कंधो पर उन्होंने रख दिया और कहा कि बेली रोड चलिए। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि मैं उस समय अजीबो-गरीब स्थिति में था। जब सड़क से गुजरने वाले, पैदल हों या गाड़ी से या साइकिल से सभी लोग जननायक कर्पूरी ठाकुर को मोटरसाइकिल से देख रहे थे। सभी के चेहरे पर अविश्वास था।
लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने बड़े राजनेता और बिहार के मुख्यमंत्री मोटरसाइकिल से सफर कर रहे हैं। यह नहीं हो सकता। आपस में तर्क वितर्क सही गलत होने लगा। कईयों ने उंगली से इशारा कर बताना चाहा कि देखें कर्पूरी ठाकुर जी मोटरसाइकिल से जा रहे हैं। कईयों ने सिर झुकाकर अभिवादन किया। कईयों ने हाथ उठाकर प्रणाम किया। उसके बाद कर्पूरी ठाकुर ने निहोरा प्रसाद यादव को बताया कि कई दिनों से विदेश के कुछ पत्रकार मुझसे मिलने आए हैं। समय नहीं रहने के कारण उन्हें प्रेसिडेंट होटल में ठहरने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैंने पत्रकारों से वादा किया था कि सुबह छह बजे मैं स्वयं होटल में ही आकर बात करूंगा।
निहोरा प्रसाद यादव ने उस पल को याद करते हुए कहा है कि जैसे ही होटल के पास बाइक रुकी। होटल स्टॉफ और कर्मचारी दौड़ कर आ गए। जब विदेशी पत्रकारों के समूह को इसकी जानकारी मिली। वे भी बाहर आए। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को देखते ही कहा- You are really a leader of downtrodden people. We have not seen any leader as you in the entire world. निहोरा प्रसाद यादव बताते हैं कि उनका विशाल व्यक्तित्व एवं बड़े राजनेता होने का एहसास गरीबों की आवाज बनने में कभी और कहीं भी बाधक नहीं बना। यहीं कारण रहा कि वे आवाज को मजबूती प्रदान करने में साधन नहीं, अपने आपको साध्य मानकर आगे बढ़ते गए। लक्ष्य तक पहुंचने में रास्ता चाहे जैसा भी हो। उनकी तनिक भी परवाह नहीं की। न रात देखा और न दूरी देखी। न साधन देखा। न मुसीबतें देखी। निर्भीक होकर सीना फैलाकर पैर अड़ाकर लड़ने और संघर्ष से तनिक भी नहीं रुके पूरी जिंदगी ही मानें गरीबों के अपना जीवन गिरवी रख दिया।
अब बताते हैं दूसरा किस्सा ?
प्रधानमंत्री चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाज़ा इतना छोटा था कि चौधरी जी को सिर में चोट लग गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाली खांटी शैली में चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ.’ जवाब आया, ‘जब तक बिहार के ग़रीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?’
अब सुनिए वो हकीकत जब कपूरी जी ने विदेश जाने के लिए मांग कर पहना फटा कोट
1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे. उन्हीं दिनों उनका आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था. उनके पास कोट नहीं था. तो एक दोस्त से कोट मांगा गया. वह भी फटा हुआ था. खैर, कर्पूरी ठाकुर वही कोट पहनकर चले गए. वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ़्ट किया गया. आज जब राजनेता अपने महंगे कपड़ों और दिन में कई बार ड्रेस बदलने को लेकर चर्चा में आते रहते हों, ऐसे किस्से अविश्वसनीय ही लग सकते हैं.
अब सुनिए बेटे की बीमारी में भी नहीं ली सरकार की मदद
जयंत जिज्ञासु की किताब में कर्पूरी ठाकुर की खुद्दारी के एक और प्रसंग का जिक्र है। कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए चयन हो गया था। इस बीच उसकी तबीयत खराब हो गयी। उसे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि दिल की बीमारी है। ऑपरेशन के लिए मोटी रकम की जरूरत थी। ये बात जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चली तो उन्होंने अपने एक प्रतिनिधि को भेजा। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर के बेटे को राम मनोहर लोहिया अस्पताल से निकाल कर एम्स में भर्ती कराया गया।
इसके बाद इंदिरा गांधी खुद अस्पताल गई और कहा कि वह सरकारी खर्च पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे का इलाज अमेरिका में करवाएंगी। कर्पूरी ठाकुर को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि मर जाएंगे, लेकिन बेटे का इलाज सरकारी खर्च से नहीं करायेंगे। बाद में जयप्रकाश नारायण ने पैसे का बंदोबस्त कराया और न्यूजीलैंड भेज कर उनके बेटे का इलाज कराया।
कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी का ये एकमात्र किस्सा नहीं है। मौजूदा वक्त में नेता सत्ता मिलते ही अपने और परिवार के लिए धन-संपत्ति जुटाने के लिए नए-नए तरकीब ढूंढने लगता है। वहीं, स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार दशकों तक विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने एक मकान तक नहीं बनवाया।
क्रर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो रिश्ते में उनके एक बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए। उन्होंने मुख्यमंत्री साले से नौकरी के लिए सिफारिश लगवाने कहा। बहनोई की बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उन्होंने अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा कि जाइए और एक उस्तरा आदि खरीद लीजिए। अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।
अब जानते हैं बिहार के लिए बिहार के नाई परिवार में जन्में ठाकुर ने क्या काम किये
1.1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए. आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी
2.सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी
3.जब 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना
४.1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया.इसके चलते उनकी आलोचना भी ख़ूब हुई लेकिन हक़ीक़त ये है कि उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया.
5.मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.
राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए. जब कि आज के दौर में करोड़ो रूपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता. उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं.
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