साहिबज़ादे ज़ोरावर सिंह और फ़तेह सिंह सिख धर्म के दो सबसे प्रसिद्ध शहीद हैं।
बादशाह औरंगजेब के निर्देश पर सन 1704ई में मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया।
इस घटना में गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्रों को कैद कर लिया गया।
और उनके सामने यह शर्त रखी गई कि यदि वे इस्लाम कबूल कर लेते हैं तो उन्हें नहीं मारा जाएगा।
धर्मान्तरण के इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद दोनों साहिबजादों को मौत की सजा दी गई और ईंट की दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया,
इन दोनों शहीदों ने धर्मान्तरण की बजाय मौत को गले लगा लिया।
वीरता और बलिदान को याद किया जाता है
सेना पर मुगल सेना ने हमला कर दिया था
आनंदपुर साहिब किला संघर्ष का प्रारंभिक केंद्र था
हमने अब तक जो भी इतिहास पढ़ा उसमे हमें अभी तक कोई भी ऐसी घटना से रूबरू नहीं कराया गया जिसमे मुगलों की काली करतूतों को दर्शाया हो ,, कौन थे वो लोग जिन्होंने महज छोटी से उम्र में देश के लिए बलिदान दे दिया,, किस मुस्लिम आक्रांता ने उन्हें दीवाल में चिनवा दिया,, अज्ज पूरी घटना को हम जानेंगे इस एपिसोड में
26 जनवारी,, यानि के आज के दिन को वीर बाल दिवस के रूप में आखिर क्यों मनाया जाता है..
इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों की वीरता और बलिदान को याद किया जाता है. गुरु गोबिंद सिंह के चारों बेटों को 19 साल की उम्र से पहले ही मुगल सेना ने मार डाला था.
दरअसल, बात यह थी कि गुरुजी गोबिंद सिंह और उनकी सेना पर मुगल सेना ने हमला कर दिया था. आनंदपुर साहिब किला संघर्ष का प्रारंभिक केंद्र था. सरसा नदी के तट पर एक लंबी लड़ाई के बाद परिवार अलग हो गए. नवाबों ने साहिबजादों को इस्लाम अपनाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. युवा लड़कों के इस निडर रवैये से मुगल सम्राट गुस्से से आग बबूले हो गए. इसके परिणामस्वरूप उन्हें तुरंत दीवारों के बीच उन बहादूर लड़को को दफन कर दिया. इतिहास में यह घटना बाद में साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह के सर्वोच्च बलिदान के रूप में मनाया जाने लगा
17वीं शताब्दी में कई राजाओं ने आनंदपुर साहिब से सिखों को खदेड़ने की कोशिश की लेकिन असफल रहे. फिर बिलासपुर राजा भीम चंद और हंडुरिया राजा हरि चंद के नेतृत्व में 1704 का हमला हुआ. आनंदपुर साहिब को आपूर्ति कई महीनों तक बंद रही. जब आपूर्ति ख़त्म होने लगी, तो सिख गुरु अपने लोगों की खातिर किला छोड़ने के लिए सहमत हो गए. ऐसा कहा जाता है कि राजाओं और मुस्लिम मुगलों ने सिखों के साथ एक समझौता किया और कसम खाई कि अगर गुरु गोबिंद सिंह आनंदपुर साहिब छोड़ देंगे तो कोई युद्ध नहीं होगा. लेकिन गुरु गोबिंद सिंह और उनके अनुयायियों पर सरसा नदी के पास हमला किया गया.
सिख नदी पार करते समय बह गये .गुरु गोबिंद सिंह का परिवार अलग हो गए. गुरु स्वयं अपने दो बड़े पुत्रों, अजीत सिंह और जुझार सिंह और 40 अन्य सिखों के साथ चमकौर साहिब की ओर बढ़े, लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को घिरा हुआ पाया. छोटी संख्या में सिखों ने मुगलों की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी. युद्ध में अजीत सिंह और जुझार सिंह की जान चली गयी. गुरु गोबिंद सिंह के अन्य दो पुत्रों को बादशाह औरंगजेब के निर्देश पर सन 1704ई में मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया।
और जोरावर सिंह और फतेह सिंह का अपहरण कर लिया गया और
और उनके सामने यह शर्त रखी गई कि यदि वे इस्लाम कबूल कर लेते हैं,तो उन्हें नहीं मारा जाएगा
अंततः मुगल गवर्नर की मांगों के आगे झुकने से इनकार करने के बाद उन्हें जिंदा ईंटों से चुनवा दिया गया.
दस सिख गुरुओं में से अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, 1666 को पटना, बिहार में हुआ था।
गुरु गोविंद सिंह की जयंती की गणना के लिए नानकशाही कैलेंडर का उपयोग किया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह अपने पिता ‘गुरु तेग बहादुर’ यानी नौवें सिख गुरु की मृत्यु के बाद 9 साल की उम्र में 10वें सिख गुरु बने थे।
वर्ष 1708 में उनकी हत्या कर दी गई।